एक पुराना शब्द है 'चापलूस ' आजकल उसका समानार्थी शब्द है ' चमचा ' । यह चमचा कसौटी को बदलने नहीं देता ।
चापलूसी मीठा जहर है। सुंदर शब्दों की प्यालियों से भरा हुआ यह हर किसी का मन मुग्ध कर लेता है। लेकिन अपना हित इसी में है कि इसे अमृत समझकर , इसे पीने की भूल नहीं करना चाहिए।
बीस चापलूसों की अपेक्षा एक निदंक भला है, जो कमियाँ दर्शाता रहकर कसौटी का कार्य करता है , जिनमें निंदा सहन करने की शक्ति नहीं है अथवा जिनके निंदक नहीं है, उसकी प्रगति में संदेह है । प्रशंसकों और चापलूसों द्वारा वस्तु स्थिति को सदैव बढ़ा- चढ़ाकर प्रस्तुत किये जाने से अहं ,दंभ और प्रदर्शन की प्रवृत्ति पनपती है। इससे व्यक्ति का पतन अवश्यम्भावी है।
गुण ग्रहिता ह्वदय से निकलती है और चापलूसी दाँतों से। गुण ग्रहिता निस्वार्थ होती है और चापलूसी स्वार्थमय।
धन्यवाद।।।
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