शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

गुरु ।

             गुरु ।

किसी विषय में हमें जिससे जरूरी ज्ञान मिले, हमारा अज्ञान दूर हो, उस विषय  में वह हमारा गुरू हो जाता है । जैसे हम किसी से मार्ग पूछतेहैं और वह हमें मार्ग बता देता है तो मार्ग बताने वाला हमारा गुरु हो जाता हैै ।हम चाहें माने या ना मानें।


गुरु एक छोटा बच्चा भी हो सकता है। कई मामलों में हमें बच्चोसे भी बहुत कुछ सिखने को मिलता है । इस जमाने मे सच्चे संत म्हात्मा देखने को नहीं मिलते । सच्चे महात्मा पहले जमाने मे भी बहुत कम थे, वर्तमान में तो विशेषकर कम होगए है वर्तमान मे तो गुरु बनना एक व्यवसाय हो गया है । 

आज के गुरु शिष्य  इसलिए बनाते हैं कि उनकी आजीविका चलती रहे । अपनी मनमानी होती रहे । आजकल नकली चीजो का जमाना है ।ब्रह्मण भी नकली गृहस्थी भी नकली ,साधु भी नकली ,ब्रह्मचारी भी नकली । यहाँ तक की खाने पीने  की सभी वस्तुएँ भी नकली ।   

जो सच्चे संत महात्मा होते है , उनको गुरु बनने का शौक नहीं होता, उन्हें तो दूनिया के उद्वार का शौक होता है । उनमे  जन कल्याण की सच्ची भावना होती है । भगवान की जगह अपनी पूजा करवाना  पाखाण्डिपौ का काम है । 


जिसकेभीतर शिष्य बनाने की इच्छा है, धन कमाने की इच्छा है, मान बड़ाई की इच्छा है , उसके द्वारा दूसरो का कल्याण तो दूर उसका अपना कल्याण भी नहीं हो सकता ।
सच्चे गुरू की महिमा बहुत है।  गुरु की महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किताबें

गुरू