शनिवार, 25 नवंबर 2017

अधूरापन।।

    अधूरापन ।।

हर मनुष्य अपने आप को अधूरा  समझता है।  सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी  उसे अपने जीवन मे  खालीपन महसूस होता रहता हैै ।

हर मनुष्य अधूरा है अौर उसे पूर्णता की यात्रा करनी ही पड़ती है। हम अपने जीवन से कभी संतुष्ट नहीं हो पाते , हमारी बहुत  सारी इच्छाएँ होती है,हम बहुत कुछ पाना चाहते है ।

जीवन इतना बड़ा है कि हम उसे समझ ही नही पाते ,हर इंसान अपने जीवन के खालीपन को भरने के सब कुछ करता है फिर भी न जाने  क्यो जीवन के अंतिम पड़ाव मे वह यह ही महसूस करता है कि अभी तो मुझे बहुत कुछ करना था

इस अधूरेपन को हम योग अोर परमार्थ के द्वारा ही भर सकते है ।




धन्यवाद।

रविवार, 12 नवंबर 2017

चापलूसी : मीठा जहर

   

  एक पुराना शब्द है 'चापलूस ' आजकल उसका समानार्थी शब्द है ' चमचा ' । यह चमचा कसौटी को बदलने नहीं देता ।

चापलूसी मीठा जहर है। सुंदर शब्दों की प्यालियों से भरा हुआ यह हर किसी का मन मुग्ध कर लेता है। लेकिन अपना हित इसी में है कि इसे अमृत समझकर , इसे पीने की भूल नहीं करना चाहिए।

बीस चापलूसों की अपेक्षा एक निदंक भला है, जो कमियाँ दर्शाता रहकर कसौटी का कार्य करता है , जिनमें निंदा सहन करने की शक्ति नहीं है अथवा जिनके निंदक नहीं है, उसकी प्रगति में संदेह है । प्रशंसकों और चापलूसों द्वारा वस्तु स्थिति को सदैव बढ़ा- चढ़ाकर प्रस्तुत किये जाने से अहं ,दंभ और प्रदर्शन की प्रवृत्ति पनपती है। इससे व्यक्ति का पतन अवश्यम्भावी है।

गुण ग्रहिता ह्वदय से निकलती है और चापलूसी दाँतों से। गुण ग्रहिता निस्वार्थ होती है और चापलूसी स्वार्थमय।

धन्यवाद।।।

बुधवार, 8 नवंबर 2017

।। डर ।।

आज आवश्यकता है जीवन की सत्यता , सादगी, सेवा भावना , प्रेम ,भाईचारा , सामाजिक , समरसता ,एकता जागरूकता ,व निरंतरता की। हम अक्सर किसी काम को शुरु करने से पहले ही उसे कठिन मान बैठते हैं। इसलिए हम उस काम में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाते।

मैंने अपने अनुभव से यह जाना है कि डर का न होना साहस नहीं है, बल्कि डर पर विजय पाना साहस है। बहादूर वह नहीं है तो भयभीत नहीं होता , कभी डरता रहीं , बल्कि बहादूर वह है जो इस डर को परास्त करता है। यह शारीरिक बहादुरी से तो कम,लेकिन मानसिक बहादुरी से ज्यादा संभव है।

क्या कभी किसी ने सोचा कि एक व्यक्ति जो चाहता था उसे क्यों नहीं मिला। जबकि उसके पास प्रतिभा , शक्ति , धीरज और प्रतिबद्धता थी? उसके पास यह सब कुछ था, लेकिन उसके भीतर एक डर था, जिससे वह हमेशा हारता रहा। इसलिए इस डर से बचे और इस पर काबू पाएं।

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

परिश्रम का कोई विकल्प नहीं।


  1. सफलता यदि चाहते तुम भी परिश्रम से जोड़ लो नाता । फश्रमयदि करे कोई , पत्थरों में फूल खिल जाता।।

एक धनवान पिता का पुत्र क्या मोची का काम करेगा ? क्या पढ़ा लिखा युवक ऐसा काम करेगा ? उस गलत मान्यताओ और धारणाओं ने आदमी को आलसी बना दिया है। आदमी बिना हाथ पैर हिलाये सिधा सुख चाहता है। यह सच है 'परिश्रम का कोई विकल्प नहीं '।जीवन निर्माण की पहली शर्त है-'कठोर परिश्रम'।समाज और राष्ट्र निर्माण की पहली शर्त है 'कठोर श्रम' । प्रतिभा परिश्रम से ही निखरती है। विजयलक्ष्मी श्रम की सहचरी और साहस की पत्नी है कहा भी है- हो हिम्मत पास तो मुट्टी में आसमान । परिश्रम वह सुनहरी चाबी है जो किस्मत के फाटक खोल देती है।

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