शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

।।शिक्षक।।

एक बार महात्मा गाँधी ट्रेन में सफर कर रहे थे। ट्रेन में सामने वाली सीट थोड़ी-सी फटी हुई थी। अचानक एक आदमी जो उनकी बगल में बैठा था उस फटी हुई सीट पर जाकर बैठ गया। उसने अपने बैग से सूई धागा निकाला और उस सीट को सीने लगा। गाँधीजी यह देखकर अचरज में पड़ गए। उन्होंने उत्सुकता  उस सज्जन से पूछा ,"बन्धु।आप कौन हैं?" "मैं एक शिक्षक हूँ।" उस सज्जन ने जवाब दिया । तब गाँधीजी ने कहा - मुझे पक्का पता था कि आप एक शिक्षक ही होंगे। क्योंकि एक  शिक्षक ही समाज को जोड़ने की बात सोच सकता है। कहा भी है:"शिक्षक एक मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है"।

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