ढाई आखर प्रेम का।।
प्रेम का अर्थ है "त्याग आैर सेवा। प्रेम एक ऐसा शब्द है, जो टूटे हुए दिलो को जोड़ता है,बिछड़ो को मिलाता है। विद्वेष को शांत करता है। शिकायतो को दूर करता है। यह सर्व विदित है
कि पारस को छूकर लोहा बहुमूल्य सोना बन जाता है। कुटिलता ,अनुदारता कृपणता व संकीर्णता को त्याग कर हम
उदारता अपनाएं तो हमारा मन प्रेम पयोधि बन जाएगा।
प्रेम जीवन के हिमालय का वह प्रणत है, जो गंगा-जमुना
बन बहता है और धरती के कण -कण को अंकुरित ,पल्लवित व पुष्पित करता है।
"खाता-बही न जोड़ता, बांचे नहीं किताब।
प्रेमी अपने प्रेम का ,रखता नहीं हिसाब।।
वह घर बनता स्वर्ग-सा ,रहता सुख का वास।
जिस घर में पलता रहे, प्रेम और विशवास।।"
कबीर ने भी कहा हैः ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
धन्यवाद ।
प्रेम का अर्थ है "त्याग आैर सेवा। प्रेम एक ऐसा शब्द है, जो टूटे हुए दिलो को जोड़ता है,बिछड़ो को मिलाता है। विद्वेष को शांत करता है। शिकायतो को दूर करता है। यह सर्व विदित है
कि पारस को छूकर लोहा बहुमूल्य सोना बन जाता है। कुटिलता ,अनुदारता कृपणता व संकीर्णता को त्याग कर हम
उदारता अपनाएं तो हमारा मन प्रेम पयोधि बन जाएगा।
प्रेम जीवन के हिमालय का वह प्रणत है, जो गंगा-जमुना
बन बहता है और धरती के कण -कण को अंकुरित ,पल्लवित व पुष्पित करता है।
"खाता-बही न जोड़ता, बांचे नहीं किताब।
प्रेमी अपने प्रेम का ,रखता नहीं हिसाब।।
वह घर बनता स्वर्ग-सा ,रहता सुख का वास।
जिस घर में पलता रहे, प्रेम और विशवास।।"
कबीर ने भी कहा हैः ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
धन्यवाद ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें