सोमवार, 4 दिसंबर 2017

जीवन की मिठास ।।

  जीवन की मिठास ।।

एक राहगीर ने नदी से पूछा " है माता ! क्या राज है कि तू इतनी छोटी है परन्तु फिर भी तेरा जल इतना मीठा है। जबकि
सागर इतना विशाल है, किन्तु उसका जल खारा है। "


नदी ने राहगीर से कहा कि "पथिक ! अच्छा होगा, कि तुम यह रहस्य सागर से ही पूछो। " पथिक ने सागर से भी यही सवाल किया ।

सागर ने कहा "हे मनुष्य ! नदी इस हाथ लेती है, उस हाथ देती है अपने पास कुछ नहीं रखती । परन्तु मैं सबसे लेता हूँ, देता किसी को नही ।  इसलिए मैं अपने में ही घुल-घुल कर खारा होता जा रहा हूं। यह मेरी संकीर्ण स्वार्थवृति है।"

रहागीर समझ गया कि जाे अपने सुख दुख साक्षा नही करता ,
जाे इस हाथ से लेकर उस हाथ देता नहीं, उसके जीवन की
मिठास समाप्त हो जाती है। अतः हमें भी अर्जन के साथ विसर्जन भी करना चाहिए।

धन्यवाद।

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