सुख- दुःख ।।
मनुष्य जीवन मे सुख - दुःख , धूप- छाँव के समान है ।
जब मनुष्य के जीवन मे दुःख नहीं आता तब तक वह सुख की महत्ता को नहीं समझ पाता । मनुष्य जीवन के सभी दिन एक
समान नहीं रहते । जैसे सूर्य की किरने पृथ्वी पर समान रूप से नहीं पड़ती उसी प्रकार सुख-दुःख की छांव जीवन पर समान
रूप से नहीं पड़ती है।
सुख और दुःख मनुष्य के अपने कर्मो का ही फल होता है
इसके लिए हमे दूसरो को दोष नहीं देना चाहिए ।
आजकल का मनुष्य अपने दुःखो से उतना दुःखी नहीं है,
जितना दूसरो के सुखो से ।
हमारा मनुष्य जीवन अनमोल है । यह जीवन तभी सार्थक
बनेगा जब इसका उपयोग अच्छे कार्यो के लिए करें ।
ज्ञानी लोग इस मूल्यवान अवसर का लाभ उठाते है और मूर्ख
गँवाकर अन्त में रोते पछताते है ।
मनुष्य जीवन मे सुख - दुःख , धूप- छाँव के समान है ।
जब मनुष्य के जीवन मे दुःख नहीं आता तब तक वह सुख की महत्ता को नहीं समझ पाता । मनुष्य जीवन के सभी दिन एक
समान नहीं रहते । जैसे सूर्य की किरने पृथ्वी पर समान रूप से नहीं पड़ती उसी प्रकार सुख-दुःख की छांव जीवन पर समान
रूप से नहीं पड़ती है।
सुख और दुःख मनुष्य के अपने कर्मो का ही फल होता है
इसके लिए हमे दूसरो को दोष नहीं देना चाहिए ।
आजकल का मनुष्य अपने दुःखो से उतना दुःखी नहीं है,
जितना दूसरो के सुखो से ।
हमारा मनुष्य जीवन अनमोल है । यह जीवन तभी सार्थक
बनेगा जब इसका उपयोग अच्छे कार्यो के लिए करें ।
ज्ञानी लोग इस मूल्यवान अवसर का लाभ उठाते है और मूर्ख
गँवाकर अन्त में रोते पछताते है ।
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