सुन अपने मन की धुन ।
एक बार एक बूढ़ा व्यक्ति और उसका पुत्र अपना गधा लिए बाजार जा रहे थे ----- । यह कहानी आप सब ने सुन रखी होगी । करीब 2500 वर्ष पुरानी ईसप की इस नीतिकथा का सबक आज भी प्रासंगिक है कि लोगों को खुश करने के लिए
परेशान होने की जरूरत नहीं हैं ।
अपनी जरूरतों और क्षमताओं के अनुसार काम करे , लोगों के कहे अनुसार नहीं । इसका मतलब यह भी नहीं कि कहीं आप किसी की भी ना सुनें आैर अपनी मनमानी शुरु कर दें । शुभचिंतको की सलाह व आलोचना को सूने , समझे ,मनन करे और उचित लगे तो स्वीकार करे ।
इसके
लिए आप यह नीति अपना सकते हैं :- सुने सबकी करे मन की । सफलता के लिए आत्मविश्वास जरूरी है। आत्म विश्वास के लिए मन की स्वीकृति।। यदि आप खुद का सम्मान नहीं करेगें तो दूसरों से भी सम्मान पाने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।
हीनभावना के कारण आपका व्यक्तित्व प्रभावहीन
होगा और सफलता के लिए किया गया प्रयास अधूरा होगा ।
दूसरो की पसंद नापसंद को स्वयं पर हावी ना होने दे ।लोग
आपको किस रूप मे देखना चाहते है यह जरूरी नहीं है जितना यह कि आप स्वयं को किस रूप में सफल मानते है ।
इस डर से कि क्या कहेंगे लोग खुद को दूसरो के हिसाब से बदलने की जरूरत नहीं है । खुद को जानना है तो सबसे पहले अपने बारे मे दूसरों के फैसले सुनना बंद करें ।
जहॉ एक बार आप अपना आदर करने लगे ,अपने पक्ष में
बोलने लगे तो आपको अपनी संभावनाएँ और क्षमताएँ भी
दिखाई देने लगेंगी ।
जहॉ एक बार आप अपना आदर करने लगे ,अपने पक्ष में
बोलने लगे तो आपको अपनी संभावनाएँ और क्षमताएँ भी
दिखाई देने लगेंगी ।
- धन्यवाद ।
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