जिस प्रकार एक ही जल को कोई 'वारि'कहता है कोई 'पानी',कोई 'वाटर' कहता है तो कोई 'एक्वा', उसी प्रकार एक ही सच्चिदानन्द को देशभेद के अनुसार कोई 'हरि'कहता है तो कोई 'अल्लाह',कोई'गाड' कहता है तो कोई 'ब्रह्मा'।
जिस प्रकार कुम्हार के यहाँ हण्डी , गमले, सुराही,सकोरे आदि भिन्न - भिन्न वस्तुएँ होती हैं, परन्तु सभी एक ही मिट्टी की बनी होती है, उसी प्रकार ईश्वर एक होते हुए भी देश-कालादि के भेदानुसार भिन्न-भिन्न रूपों और भावों में प्रकट होते है।
ईश्वर के अनन्त नाम और अनन्त रूप हैं। जिस नाम और जिस रुप में तुम्हारी रूचि हो उसी नाम से और उसी रूप में तुम उन्हें पुकारों, तुम्हें उनके दर्शन मिलेंगे।
जिस प्रकार कुम्हार के यहाँ हण्डी , गमले, सुराही,सकोरे आदि भिन्न - भिन्न वस्तुएँ होती हैं, परन्तु सभी एक ही मिट्टी की बनी होती है, उसी प्रकार ईश्वर एक होते हुए भी देश-कालादि के भेदानुसार भिन्न-भिन्न रूपों और भावों में प्रकट होते है।
ईश्वर के अनन्त नाम और अनन्त रूप हैं। जिस नाम और जिस रुप में तुम्हारी रूचि हो उसी नाम से और उसी रूप में तुम उन्हें पुकारों, तुम्हें उनके दर्शन मिलेंगे।
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