गर्व या नम्रता ।
पानी से भरे घड़े के ऊपर रखी हुई छोटी सी कटोरी ने एक दिन घड़े से कहा कि "तुम प्रत्येक बर्तन को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा ,अपने शीतल जल से भर देते हो, किसी को भी खाली नहीं जाने देते,परन्तु मुझे कभी नहीं भरते,जबकि मैं सदा तुम्हारे सिर पर रहती हूँ आैर दूसरे सब बर्तन मेरे नीचे रहते हैं।
इतना पक्षपात क्यों? "
घड़े ने शांत स्वर में उतर दिया, " इसमें पक्षपात की कोई बात नहीं है। अन्य सब बर्तन मेरे पास आकर झुकते हैं,
जिससे मैं उन्हें अपने शीतल जल से भर देता हूँ, परन्तु तुम तो
कभी झुकती नहीं,गर्व से चूर हमेशा मेरे सिर पर सवार रहती हो, इसलिए मैं तुम्हें भर नहीं पाता ।यदि तुम भी नम्रता से जरा
झुकना सीखो तो तुम भी खाली नहीं रहोगी । नम्रता से ही महानता प्राप्त होती है।"
नम्र व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
धन्यवाद।
झुकना सीखो तो तुम भी खाली नहीं रहोगी । नम्रता से ही महानता प्राप्त होती है।"
नम्र व्यक्ति सदा सुखी रहता है।
धन्यवाद।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें