रविवार, 31 दिसंबर 2017

।। नववर्ष ।।

  ।। नववर्ष।।

अचानक ही पुराने कलैण्डर पर नजर गई तो देखा इस साल के दो दिन ही शेष रह गए है, नया साल आने वाला है। लोग नए साल के स्वागत के लिए उत्साहित है। पार्टिया ,नाच -गाने आदि का आयोजन जगह-जगह दिखाई देता है। हर कोई उम्मीद करता है कि आने वाला वर्ष  उसके के लिए अपार खुशियाँ लेकर आए। हम पुरे साल उत्साहित अौर  उर्जावान
बने रहे ।

क्या वास्तव मे हम पुरे साल उतने ही उर्जावान बने रहते है ?
जितना कि हम नववर्ष के स्वगात के लिए उत्साहित रहते है ।
हम तो नववर्ष से  बहुत उम्मीदे रखते है, परन्तु कभी सोचा है,
कि नया साल भी तुमसे कुछ चाहता है।

वह चाहता है कि मै जब भी मनुष्य के जीवन मे नया बनकर
जाऊँ, मेरे हर पल ,हर क्षण ,हर प्रभात का मनुष्य इसी उल्लास के साथ स्वागत करता हुआ मिले।
केवल मनुष्य जीवन ही नहीं,इस संसार का प्रत्येक जीवन,
मेरे लिए नित्य नया उपहार लेकर आता रहे।

जीवन का हर प्रभात एक सच्चे मित्र की तरह होता है। हर प्रभात यही चाहता है कि जब मैं किसी के जीवन में जाऊँ तो
वो मेरे हर पल का, हर क्षण का इसी तरह स्वागत।करे, उनका
एक कदम आगे बढ़ा हुआ मिले। वो कभी भी हारा हुआ या
उदास ना मिले।

इसीलिए हर प्रभात, सुप्रभात।
धन्यवा

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

।।शिक्षक।।

एक बार महात्मा गाँधी ट्रेन में सफर कर रहे थे। ट्रेन में सामने वाली सीट थोड़ी-सी फटी हुई थी। अचानक एक आदमी जो उनकी बगल में बैठा था उस फटी हुई सीट पर जाकर बैठ गया। उसने अपने बैग से सूई धागा निकाला और उस सीट को सीने लगा। गाँधीजी यह देखकर अचरज में पड़ गए। उन्होंने उत्सुकता  उस सज्जन से पूछा ,"बन्धु।आप कौन हैं?" "मैं एक शिक्षक हूँ।" उस सज्जन ने जवाब दिया । तब गाँधीजी ने कहा - मुझे पक्का पता था कि आप एक शिक्षक ही होंगे। क्योंकि एक  शिक्षक ही समाज को जोड़ने की बात सोच सकता है। कहा भी है:"शिक्षक एक मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है"।

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

।। मूल्यांकन जीवन का ।।

      ।। मूल्यांकन जीवन का।।

मानव जीवन तो एक अमूल्य हीरा है, करोड़ो रूपेए देकर भी ऐसा हीरा दोबारा मिलना मुश्किल है। यह अलग बात है कि हम लोग इसकी कीमत नहीं जानते।

ईश्वर ने हमे इस जीवन मूल्य को समझने के लिए बुद्धि दी है।
अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार , हम अपने -अपने जीवन का मूल्यांकन दुसरो के साथ करते रहते है। इसी जीवन मूल्यांकन के चक्कर मे जीवन कब समाप्त हो जाता है पता ही नहीं चलता । भूतकाल का पछतावा अौर भविष्य की चिन्ता मे हम अपना वर्तमान भुल जाते है, अपने आप को भुल जाते है।

और जीवन के अनमोल पलो का सही मूल्यांकन नहीं कर पाते ।जीवन यूँ ही निकल जाता है।

गरीब दूर तक चलता है खाना खाने के लिए तो अमीर मीलों चलता  है खाना पचाने के लिए।
किसी के पास खाने के लिए एक वक्त की रोटी नहीं है तो किसी के पास खाने के लिए वक्त ही नहीं है।

कोई लाचार है इसलिए बिमार है तो कोई बिमार है इसलिए लाचार है। कोई अपनो के लिए रोटी छोड़ देता है तो कोई
रोटी के लिए अपनो को छोड़ देता है।

सचमुच यह जीवन यूँ ही निकला जा रहा है।


धन्यवाद।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

मानवता

कभी-कभी ऐसा लगता है , जैसे मानव जीवन से मानवता समाप्त होती जा रही है । हर व्यक्ति कोई कार्य सिर्फ अपने लाभ के लिए ही करता नजर आ रहा है। दया-धर्म आदि का मनाव जीवन में अपना एक अलग स्थान है।

हम अगर किसी के हित मे कुछ करते है तो उसका प्रतिफल हमें किसी न किसी रूप में जरूर मिलता है। हमारे आस-पास बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो छोटे-छोटे कार्य करके सामाज को लाभ देने का काम करते है। ये वो लोग होते है जिन्हें समाज के सुख में ही आना सुख नजर आता है जैसे लोगो की वजह से समाज में मानवता आज भी जीवित है। समाज को इनसे सीखना चाहिए और समाज की प्रसन्नता में अपनी खुशी खोजनी चाहिए । वैसे भी सनातन धर्म में सेवा करने से बड़ा पुण्य कोई नहीं है। सेवा न केवल हमें आत्मिक संतुष्टि देती है बल्कि जीवन को सुधारती है।



धन्यवाद🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

जीवन की मिठास ।।

  जीवन की मिठास ।।

एक राहगीर ने नदी से पूछा " है माता ! क्या राज है कि तू इतनी छोटी है परन्तु फिर भी तेरा जल इतना मीठा है। जबकि
सागर इतना विशाल है, किन्तु उसका जल खारा है। "


नदी ने राहगीर से कहा कि "पथिक ! अच्छा होगा, कि तुम यह रहस्य सागर से ही पूछो। " पथिक ने सागर से भी यही सवाल किया ।

सागर ने कहा "हे मनुष्य ! नदी इस हाथ लेती है, उस हाथ देती है अपने पास कुछ नहीं रखती । परन्तु मैं सबसे लेता हूँ, देता किसी को नही ।  इसलिए मैं अपने में ही घुल-घुल कर खारा होता जा रहा हूं। यह मेरी संकीर्ण स्वार्थवृति है।"

रहागीर समझ गया कि जाे अपने सुख दुख साक्षा नही करता ,
जाे इस हाथ से लेकर उस हाथ देता नहीं, उसके जीवन की
मिठास समाप्त हो जाती है। अतः हमें भी अर्जन के साथ विसर्जन भी करना चाहिए।

धन्यवाद।

रविवार, 3 दिसंबर 2017

।ढाई आखर प्रेम का।।

      ढाई आखर प्रेम का।।

प्रेम का अर्थ है "त्याग आैर सेवा।  प्रेम एक ऐसा शब्द है, जो टूटे हुए दिलो को जोड़ता है,बिछड़ो को मिलाता है। विद्वेष को शांत करता है। शिकायतो को दूर करता है। यह सर्व विदित है
कि पारस को छूकर लोहा बहुमूल्य सोना बन जाता है। कुटिलता ,अनुदारता कृपणता व संकीर्णता को त्याग कर हम
उदारता अपनाएं तो हमारा मन प्रेम पयोधि बन जाएगा।

      प्रेम जीवन के हिमालय का वह प्रणत है, जो गंगा-जमुना
बन बहता है और धरती के कण -कण को अंकुरित ,पल्लवित व पुष्पित करता है।

"खाता-बही न जोड़ता, बांचे नहीं किताब।
प्रेमी अपने प्रेम का ,रखता नहीं हिसाब।।
वह घर बनता स्वर्ग-सा ,रहता सुख का वास।
जिस घर में पलता रहे, प्रेम और विशवास।।"

    कबीर ने भी कहा हैः ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।




धन्यवाद ।

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

क्षमा वरदान है।

         क्षमा वरदान।

भोजन में अौर सब कुछ हो,पर नमक न हो तोभोजन बेकार है।
मंदिर मे सब कुछ हो,पर मूर्ति न हो तो बेकार है। अस्पताल मे
सब कुछ हो, पर डॉ० न हो तो अस्पताल बेकार है। गाड़ी मे सब कुछ हो पर ब्रेक न हो तो गाड़ी बेकार है।

     ठीक इसी तरह जीवन में और सब कुछ हो,पर आपस में
एक दूसरे को माफ करने की आदत न हो तो घर -परिवार सब
बेकार है।  क्रोध जहर है, क्षमा अमृत है। इसिलिए कहते हैकि
"क्षण भर की चुप्पी ,दिन भर की मस्ती।"

    क्रोध मनुष्य को जला देता है,क्षमा बड़ी चीज है। क्षमा प्रेम का परिधान है,विश्वास का विधान है,सृजन का सामान है, और नफरत का निदान है।

"दोष न मुख को दीजिए , दोषी है व्यवहार।
       समता के व्यवहार से,मिलता है सत्कार।।

मुख की रक्षा कीजिए ,मौन बड़ा हथियार। एक चुप सौ को हरा,उत्तम यह व्यवहार।।


     धन्यवाद।

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

रिश्ते

भारत एक ग्रामीण प्रधान देश है। गाँवो में परिवार बस्ते है। परिवारो में रिश्ते बनते है या यूँ कहे कि रिश्तो से परिवार बनते है और परिवार से समाज और गाँव। रिश्तो को पौधो की तरह धैर्य,प्रेम सर्मपण और आत्मीयता के जल से सींचना होगा , वरना वे मुरझा सकते हैं। किसी ने कहा है कि रिश्ते छः चीजों से चलते हैं-आना , जाना, खाना, खिलाना ,लेना और देना। परंतु मै यह मानती हूँ कि रिश्ते चीजो से नहीं , धैर्य, प्रेम , समर्पण और आत्मीयता से निभाते है , चलते नहीं ।
अफसोस कि आज हमारे पास साधन तो है परंतु साधना नहीं है, इसीलिए रिश्ते बेमौत मर रहे है।

  धन्यवाद ।।🙏🙏

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