शनिवार, 30 सितंबर 2017

                        सही दिशा

         

एक व्यक्ति  था जो बहुत देवताओं को पूजता और बहुत गुरू बनाकर , किसी  न किसी से कुछ पाने की फरीक में रहता ।

वह एक गुरु  के पास बैठा था। इतने में एक अन्य भक्त आया और बताया कि उसने अपने खेत  में चार - दस हाथ गहरे गङ्ढे खोदे। किसी में भी पानी नहीं निकला।"पांचवा गङ्दा खोदने जा रहा हूँ। बताइये पानी निकलेगा या नहीं।"

पहले से ही बैठा चतुर व्यक्ति गुरू के उत्तर देने तक न ठहर सका। आवेश में बोला - "इतने गड्ढे खोदने के स्थान पर यदि एक ही स्थान पर पचास हाथ गड्ढ़ा  खोदते तो इतनी जमीन भी खराब न होती और पानी भी मिल जाता।"

बात समझदारी की थी तो उसने मान ली। नया कुआँ खोदने के स्थान पिछले गड्डे को ही गहरा करने की बात समझ में आई और सिखावन को क्रियान्वित करने के लिए वापस लौट गया।अब गुरू ने उस चतुर व्यक्ति से कहा -  " तुम भी बहुत देवता और गुरूओं को तलाश न करके यदि एक पर ही श्रद्धा जमा लेते तो अच्छा होता। "

दर - दर भटकने से अच्छा है एक दर पर दृढ़ आस्था रखना।

धन्यवाद।।🙏🙏

शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

।। युवाशक्ति।।

          
 
किसी भी महापुरूष की जीवनी में , उन्होंने क्या किया, इसी का कथानक रहता है । कोई व्यक्ति सिर्फ अपना और अपने
परिवार का का ही निर्वाह करता रहे तो उसे परिवारवाले भी
स्मरण नहीं रखते । महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का नाम आज भी सब जानते हैं, प र क्या हम अपने ही उन पूर्वजो के
बारे में जानते हैं, जो सिर्फ सौ साल पहले ही हुए थे? दरअसल
याद उसी को किया जाता है, जाे औरों के लिए जीता है ।

आज समाज एवं देश की निगाहें सिर्फ युवाशक्ति की और ही
केनिद्रत है । आज युवाशक्ति जिस वातावरण में रह रही है,वे
सब बातें जीवन के प्रतिकूल है। दूरदर्शन एवं सभी समाचार
माध्यमों में धम्रपान ,मदिरापान,वासना,हिंसा,बलात्कार आदि
दृश्यो की भरमार है । लगता है जीने की कला का आधार ही
बदल रहा है
जीवन एक एक क्षण से बना है । समय को सुकार्य में लगाना
चाहिए इसका युवाशक्ति को हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
सेवा ही परम धर्म है युवा पीढ़ी को चाहिए कि वह अपने भीतर मौजूद शक्तियों और योग्यताओं को  पहचाने और उनका सदुपयोग कहीं ।

  धन्यवाद ।

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

प्रतिभा ।

         प्रतिभा ।।

महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि"जीवन का आनंद 

स्वयं को जानने में हैं।" स्वयं का निरीक्षण करना , अपनी प्रतिभा को पहचानना और उसका निरतंर विकास करना।
वास्तव मे यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए । आप अब तक सफल हुए लोगो में से किसी की भी जीवनी उठा कर पढ़ लीजिए ,उनमे एक बात समान है और वह यह कि उन्होंने अपनी प्रीतभा को पहचाना और केवल उसी पर ध्यान दिया ।

प्रकृति ने हम सभी को अलग-अलग बनाया है। सभी एक दूसरे से भिन्न है और सभी के अन्दर एक विशेष गुणहोता है
। हममें से ज्यादातर लोग अपनी योग्यतओं और प्रतिभाओं 
का विकास करने की बजाय उन्हें दबा देंते है । 

दोस्तो, जिन्दगी सिर्फ एक बार ही मिलती है। अगर आप चाहते हैं तो फिर जाे आपका पैशन है उसे अपना प्राफेशन
बनाइए । शुरुआती दौर मे कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है,पर अंततः आपका जीवन खुशियों से भर जाएगा ।


    धन्य

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

।। सुख - दुःख ।

    सुख- दुःख ।।

मनुष्य जीवन मे सुख - दुःख , धूप- छाँव के समान है ।
जब मनुष्य के जीवन मे दुःख नहीं आता तब तक वह सुख की महत्ता को नहीं समझ पाता । मनुष्य जीवन के सभी दिन एक
समान नहीं रहते । जैसे सूर्य की किरने पृथ्वी पर समान रूप से  नहीं पड़ती उसी प्रकार सुख-दुःख की छांव जीवन पर समान
रूप से नहीं पड़ती है।

सुख और दुःख मनुष्य के अपने कर्मो का ही फल होता है
इसके लिए हमे दूसरो को दोष नहीं देना चाहिए ।
आजकल का मनुष्य अपने दुःखो से उतना दुःखी नहीं है,
जितना दूसरो के सुखो से ।

हमारा मनुष्य जीवन अनमोल है । यह जीवन तभी सार्थक
बनेगा जब इसका उपयोग अच्छे कार्यो के लिए करें ।
ज्ञानी लोग  इस मूल्यवान अवसर का लाभ उठाते है और मूर्ख
गँवाकर अन्त में रोते पछताते है ।

सोमवार, 25 सितंबर 2017

दरिद्रता ।

       

              दरिद्रता।

मनुष्य प्रत्येक दशा में   अपने ही विचारो का पारिणाम है । हम
और आप या सभी अपने विचारों के अनुरूप ही परिणाम पाते है । जैसे विचार वैसे ही मनुष्य आैर उसकी स्थिति । दारिद्रता के विचार होते है तो मनुष्य दारिद्र रहता है। धनी होने के विचार होते हैं, तो मुनष्य धनी होता है।  
         किसी विचारक की उपरोक्त बातें उन लोगो के लिए
प्ररेणादायक है जाे अपनी गरीबी का रोना रोते रहते है ।
जो अपनी गरीबी या निर्धनता दरिद्रता को लेकर दुखी रहते हैं और जीवन में निराश होकर बैठ जाते हैं।
       आप चाहे कितने ही निर्धन क्यों न हो,यदि आपका मन इसे स्वीकार नहीं ,तो आपकी निर्धनता अधिक समय तक नहीं रहने वाली। निर्धनता कोठ, मकान,मोटर आदि से नहीं होती,निर्धनता तो विचारों से होती है। जो मन से गरीब और दारिद्र है वह कभी ,अपनी निर्धनता से मुक्त नहीं हो सकता।
           इसलिए गरीबी ,निर्धनता आद के विचार निकालकर आशावान बनि और सफलता पाने के लिए प्रयास कीजिए । जो लोग करोड़पति बनें हैं उनमें आत्मविश्वास था । उनके मन में धनवान बनने के लिए सपने के साथ - साथ वैसी ही आशाएं थीं,लगन थी , आत्मविश्वास था। कोई भी निराश और मन से कमजोर व्यक्ति धनवान नहीं बन सकता । अपने मन में दीनता ,दुर्बलता ,दुख और व्याधि की कल्पना मत कीजिए ,इससे आपका कोई भी संबंध नहीं है। इन विचारों से मन की उत्पादक शक्ति गिरेगी। इसलिए अपनी उत्पादन शक्ति को बढ़ाइए , अपने विश्वास को दृढ़ कीजिए, आशा का दामन न छोड़िए । यही तो सफलता का मूलमंत्र है। इसी से आपका जीवन सुख और आनंद से भर जाएगा।

                धन्यवाद।।

शनिवार, 23 सितंबर 2017

तनाव ।

      तनाव ।

अक्सर हम किसी काम को शुरू करने से
पहले ही उसकी सफलता और असफलता को लेकर तनावग्रस्त हो जाते है।
यह तनाव जब अधिक समय तक बना रहता है,तो चिन्ता रुपी कीड़ा बन जाता है। कुछ लोग तनाव से मुक्त होने के लिए नशीले पदार्थों का सेवन प्रारम्भ कर देते है। लेकिन वे ये नहीं जानते कि इससे तनाव तो कम नहीं होता बल्कि उत्तेजना और बढ़ जाती है।
इससे सोचने समझने की शक्ति भी खो बैठते है अोर समस्या का कोई सामाधान भी नही निकलता । तनाव से बचने का
सबसे अच्छा उपाय है कि हर काम, हर समस्या के समाधान
की खोज पूरे आत्मविश्वास के साथ करें। आत्मविश्वास की
कमी ही तनाव पैदा करती है।
इसीलए आज के युग के प्रबल शत्रु तनाव से सदा दूर रहे। उसे
अपने से दूर रखें । सफलता या असफलता की चिन्ता किए बिना पूरे आत्मविशवास के साथ काम पर जुट जाएँ ।


धन्यवाद। 

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

निर्णय ।

       निर्णय।

निर्णय लेना भी एक कला है ।व्यक्ति के निर्णयो मे ही
उसके विचारो की  झलक मिलती है। सकारात्मक चिंतन
वाले व्यक्ति मे नम्रता ,मित्रता ,विनम्रता , आशावादी ,साहस आदि भावनाएँ प्रबल होती है । जबकि नकारात्मक विचारधारा वाले वयक्ति मे ईर्ष्या,द्वेष ,लोभ,स्वार्थ आदि की
प्रमुखता रहती है । सकारात्मक चिंतन उचित निर्णय का आद्यार बनता है ।जबकि नकारात्मक चिंतन गलत निर्णय अथवा अनिर्णय की स्थिति उत्पन्न करता है।

     यदि अनिर्णय आैर गलत निर्णय मे से किसी एक को चुनना मजबुरी हो तो गलत निर्णय चुनना अधिक उचित होगा ,क्योकि कुछ ना करने से बेहतर है   कु छ भी करना ।  दुनिया में दो तरह के आदमी है एक तो वे जो हमेशा भाग्य को दोष देते रहते है ओर दूसरे वे जी अपने पुरुषार्थ से अपना भाग्य
स्वयं लिखते है । जो हमेशा सफल होते है और अपने गुणाे के बल पर निरतंर सफलता के मार्गपर  अग्रसर है।

धन्यवाद।।🙏🙏🙏🙏🙏

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

समय का स्वरूप ।

        समय का स्वरूप ।

समय क्या है? उसका स्वरूप क्या है? इसे दर्शाने के लिए ,
सिकन्दर के समकालीन यूनानी मूर्तिकार ने एक मूर्ति बनाई
थी उस मूर्ति का तो आज कहीं पता नहीं, लेकिन एक व्यक्ति ने
उस मूर्ति का एक चित्र देखा था। उसने समय की मूर्ति का स्वरूप कुछ इस तरह ब्यान किया था ।:- समय दिखने में बहुत
सुंदर होता है ।  समय सदा अपने पैरो की उंगलियों पर खड़ा
रहता है । क्योंकि वह सदा गतिशील रहता है । उसके पैरो पर पंख लगे होते क्योकि सदा गतिशील रहने के लिए उसे उड़ना
पड़ता है। समय के हाथ में एक उस्तरा होता है ,वह इस बात का प्रतिक है कि समय से अधिक तेज धार किसी की नहीं होती ।
 
       समय के माथे पर बाल होते है,इन्ही की सहायता से समय को पकड़ा जा सकता है। समय के सिर के पीछे बाल नहीं होते ताकि जब वह उड़ जाए तो कोई उसे पीछे से ना पकड़ पाये ।  समय का इतना सुदंर रुप मानव को जाग्रत
करने के लिए ही दिया गया है ।
   
  धन्यवाद ।

बुधवार, 20 सितंबर 2017

एकाग्रता ।

            एकाग्रता ।



एकाग्रता की जब बात की जाती है तो उसका अर्थ यही है कि
कि जिस काम को करना है, या जिस लक्ष्य को प्राप्त करना है
उसके लिए आप अपनी सारी शक्तियाँ  लगा दें ।  एक आदमी जिसके पास केवल एक ही गुण है, यदि वह अपनी सारी क्षमताओं को उसी गुण के साथ लगा दें तो उस वयक्ति से अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है जिसके पास दस गुण है
लेकिन एकाग्रता नहीं है ।
एकाग्रता से कार्य शक्ति को बड़ी उत्तेजना मिलती है , कमजोर मस्तिष्क को भी एकाग्रता की प्ररेणा अद्भुत प्रतिभा सम्पन्न बना देती है । पतंजलि ने योग साधन का सारा रहस्य एकाग्रता
को ही बताया है । मन की एकाग्रता का सबंध रूचि से है। रूखे और अरूचिकर विषयों में  मन नहीं लगता और वहाँ से
बार -बार उचटता है।इसलिए जिस विषय पर मन लगता हो ,
उसी पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और उसे और अधिक
रूचिकर बनाना चाहिए ।
सभी महान व्यक्ति तभी सफल हुए है जब उन्होंने पूरी एकाग्रता से काम किया । एकाग्रता से किया गया अध्ययन ,
एकाग्रता से की गई कला- साधना ही सफलता दिलाती है ।

    

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

दुःख

                      दुःख
एक बार भगवान ने दुःख से पूछा कि तू मेरे बन्दो को क्यों सताता है? दःख ने कहा - ' भगवान ! मैं कहाँ किसी को सताता हूँ । मैं तो स्वयं चल के किसी के पास नहीं आता । आपके बन्दे स्वयं ही मुझे बुलाते है तो मैं चला आता हूँ । 
आज का युग भौतिकवादी युग है । भौतिक सुख आज के जीवन का आशीर्वाद  अंग बन गए हैं। आज भौतिक सुखो को पाना ही मानव का एकमात्र लक्ष्य बन गया है। हर व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट है। और अधिक पाने की लालसा बढ़ती जा रही है।

सुख पाने की चाह में हम दुःखो को लगातार
बढ़ाते जाते है ।  दुःख का एक रूप चिन्ता भी
हैं। उसके पास अमुक चीज है, मेरे पास नहीं है ।
उसे पाने का दुःख या चिन्ता हमें सताने  लगती 
है कि  कैसे पाऊँ । दुःख और चिन्ता का यह क्रम लगातार चलता रहता है । जब तक आपके मन में संतोष और शान्ति नहीं होगी तब तक आप सबकुछ पाकर भी दुःखी रहेंगे ।
  
धन्यवाद ।

सोमवार, 18 सितंबर 2017

गलती ।

                     गलती ।

संसार में शायद ही कोई ऐसा मनुष्य हो जिसने कभी कोई  गलती न की हो । गलती करना मनुष्य का स्वभाव है ।
लेकिन एक ही गलती को बार -बार करना  और अपनी गलती
को स्वीकार ना करना मनुष्य की कमजोरी दर्शाता है ।

           इंसान गलतियो से ही तो सीखता है । जिस इंसान ने कभी कोई गलती नहीं की वह इंसान जीवन जीना नहीं सीखता  ।  गलतियों से सीखकर ही व्यक्ति मजबूत बनता
है।  किसी काम को करते समय जाे लोग इस बात से डरते है कि कहीं कोई गलती ना हो जाये ,वे कभी उस काम को ठीक से नहीं कर सकते । जो व्यक्ति गलती से नहीं डरता वह बड़ी
आसानी से कामपूरा कर लेता है । चाहे उसमें बहुत सारी
गलतियाँ ही क्यों ना हो ।
       गलती करके काम सीखना और असफल होकर सफल
होना एक बड़ा लाभदायक व्यपार है। एक कहावत है कि:-
" गलती यद्यपि स्वयं अंधी है तथापि वह ऐसी संतान उत्पन्न
करती है जाे देख सकती है"

  धन्यवाद।।🙏🙏🙏🙏

रविवार, 17 सितंबर 2017

विनम्रता

                    विनम्रता 
विमम्रता मनुष्य के व्यक्तित्व का ऐसा आभूषण है ,जो उसे सर्वत्र आदर और प्रशंसा दिलाता है ।जाे व्यक्ति जितना ज्यादा विनम्र होता है, उसके चालने वाले भी उतने ही ज्यादा होते है ।  यह सब
हमारे अपने व्यक्तित्व निर्माण पर निर्भर करता है ।हमारे आचार - व्यवहार में नम्रता होती है तो हमें
सबसे मिलने में, उनसे बात करने में, उठने- बैठने 
में कोई कष्ट नहीं होता । लेकिन यदि विनम्रता नहीं है तो भेदभाव जागता है । लोगों के बीच हम 
दूरियाँ पैदा कर लेते है :-   उनमे अपनत्व की भावना खो बैठते है ।
 बड़ो के प्रति कर्तव्य ,बराबर वालो के प्रति प्रेम और स्नेह ,छोटों के प्रति कुलीनता की परिचायक
और सामान्य लोगो के प्रति संवेदनशीलता ही विनम्रता के प्रमुख लक्षण है । घर ,दफ्तर, कारखाना,सफर या कहीं और विनम्रता से हम सब जगह अपने लिए 'स्थान' बना सकते है ।

 विश्वास न हो तो , आजमा कर देखिए ।

        धन्यवाद ।💐💐💐💐💐💐💐

शनिवार, 16 सितंबर 2017

                                 
                                  मौन
जीवन में सफलता पाने के लिए वाणी का संयम बहुत आवश्यक है। महात्मा गांधी प्रायः मौन व्रत किया करते थे। यह संयम रखने का अभ्यास है। सप्ताह में एक दिन या कुछ घंटे मौन रहकर चिंतन कीजिए। आप देखेंगे कि आपके अंदर धीरे - धरे  अद्भूत उर्जा का विकास हो रहा है। ज्यादा बोलने वाले व्यक्ति का काफी समय व्यर्थ की महत्वहीन बातो में नष्ट होता है। कब, किस विषय पर बोलना है, इसका विचार करके ही बोलना चाहिए।
 
         
                 "रहिमन जिह्वा बावरी, कह गयी सरग -पतार।
                 आपन तो भीतर गयी, जूती रगय कपार।।"

      रहीम जी ने ठीक ही कहा है कि यह जिह्वा बड़ी ही पागल है,जब बोलती है तो आकाश - पाताल की न जाने कितनी ऊटपटांग बाते बक जाती है। इसलिए जिह्वा पर संयम रखना आवश्यक है।।


           धन्यवाद।।।🙏🙏 🙏🙏🙏🙏

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

आत्मबल

                      आत्मबल 
     
द्वितीय महायुद्ध में बर्लिन का पतन हो गया था। जर्मनी भी पूरी तरह हवस्त हो गया था। सारे उद्योग चौपट हो गया थे। बम की मार से जापान की कमर भी टूट गई थी। लेकिन फिर क्या हुआ? जर्मनी ने तरक्की  की दिशा में कदम बढ़ाए। राष्ट्र के सभी ल्ग नये उत्साह से अपने देश के पुनः निर्माण  में लग गए। परिणाम यह हुआ कि जर्मनी ने कुछ समय में आपनी आर्थिक स्थिति मजबूत बना ली। इसी तरह जापान तो एकदम एटम बम की धूल झाड़कर  खड़ा हो गया। उसने नए नग से प्रगति की ओर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया के बड़े - बड़े दशों को मात दे दी। यह सब कैसे हुआ?
दृढ़ संकल्प ,अच्छे परिणाम की आशा और पूरे उत्साह से काम करने की शक्ति के द्वारा ही इन देशों को सफलता मिली। अब अगर इन दोनों  राष्ट्रों के लोग ये सोच लेते कि वे तो बर्बाद हो गए है ,अब कभी न उठ सकेंगे तो वे शायद कभी उन्नति न कर पातें। 
    इस उदाहरण से स्पष्ट है कि हमें अपना आत्मबल नहीं खोना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर  उसका उपयोग पूरे उत्साह से करना चाहिए।

धमवाद।।।🙏🙏🙏🙏🙏🙏

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

नजरिया

                नजरिया
   
            
हमें कोई भी काम दिया जाता है या हम कोई भी काम करने बैठते हैं तो उसमें मिलने वाली सफलता और असफलता बहुत कुछ उसके प्रति हमारे नजरिये पर निर्भर करती है। यदि हम काम शुरू करने से पहले ही हार मान लें तो न वह काम पूरा होगा ,और न उसका मनवांछित परिणाम  प्राप्त हागा। यदि हम यह मान कर कोई काम शुरु करें  कि कोई भी काम ऐसा नहीं है जिसमें सफलता नहीं मिल सकती है। काम कठिन तो हो सकता है परन्तु सफलता ना मिले ऐसा नहीं हो सकता।
     
यदि किसी काम को करने के लिए उचित नजिरया बना लिया जाये और उसे पूरी लगन से किया जाये तो एक न एक दिन सफलता अवश्य आपके कदम चूमेंगी । आपको अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए। हर इंसान सबसे नीचे की सीढ़ी पर पैर रखकर ही ऊपर चढ़ता है। यदि इस नजरिये से काम करेंगे ,तो मंजिल अवश्य मिलेगी।

धन्यवाद।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बुधवार, 13 सितंबर 2017

भाषा ।

       भाषा ।

'भाषा ' शब्द के बारे में आप सभी जानते है । आप ये भी जानते है कि 'भाषा' विचारो के आदान-प्रदान का सशक्त
माध्यम है । दुनिया मे अनेक तरह की भाषाएँ और बोलियाँ
बोली जाती है, जिनसे हम अपने विचारो को दूसरो तक
पहुँचाते है ।

आप भाषा के रूपो के बारे मे भी जानते है जैसे -लिखित,
मौखिक, सांकेतिक आदि । क्या आप इनके अलावा भाषा
के दो अन्य रूपो के बारे मे भी जानते है? नहीं ना! वो दो
अन्य रूप है:- मृदुभाषा आैर मीठीभाषा ।

दुनिया मे हम किसी भी भाषा मे बात करे , इन दोनो रूपो
से हमारे व्यक्तित्व को पहचान मिलती  है । हम अपनी भाषा-
बोली से दूसरो द्वारा पहचाने जाने जाते है । अंहकार, ईर्ष्या, द्वेष ,और क्रोध हमारे सद्व्यवहार और मधुरवाणी के शत्रु है ।

आपके बतचीत करने का ढंग इस प्रकार होना चाहिए कि एक
बार जो आपसे मिले , वह आपका ही होकर रह जाए ।

  "ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय ।
        औरन को शीतल करे आपहुँ शीतल होय "

    धन्यवाद ।
     

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

अवसर।

        अवसर ।
 

  
एक विद्वान ने कहा है कि सफलता का रहस्य इस बात मे  
छिप  हैकि आप , अवसर को कितना महत्वपूर्ण समझते हैं 
और उसे कब, किस तरह पकड़ते है । अवसर जब मिलता
है तो देखने में बहुत छोटा आैर साधारण दिखाई देता है ।

अक्सर लोग झ्सी कारण इसे छोड़ देते है । जिन युवको का
मन कर्मशील है उनके लिए अवसरो की कोई कमी नहीं होती है । जीवन मे फैसला करने वाला क्षण बहुत सूक्ष्म होता है ।

यदि हम उस क्षण को चूक जाते है तो दोष हम भाग्य व व्यवस्था को देते है ।जो हाथ आए अवसरो को समय पर पकड़ना जानते है, वही जीवन में अवसर का लाभ उठाते है ।


धन्यवाद।🙏🙏🙏

सोमवार, 11 सितंबर 2017

सपने ।

                सपने ।

जीवन की  ऊँचाईयों को छूने के सपने सभी देखते है, पर
सफल कुछ ही लोग हो पाते है । सपने देखना बुरी बात नहीं है,
कुछ ना करना बुरी बात है ।  कुछ लोग सोते हुए सपने देखते
है, और कुछ लोग जागकर सपने देखते है ।

जाे लोग जागते हुए सपने देखते है और अपनी मंजिल की तरफ निरंतर कदम बढ़ाते है , वे ही एक दिन सफलता की
सीढ़ी चढ़ पाते है ।आप कोई भी जीवन उद्देश्य लक्षित करिए कि मुझे यह बनना है, तो उसकी पूर्ति के लिए आवश्यक आैर
निर्धारित कदम बढ़ायें । केवल सोच लेने से कुछ नहीं होगा ।

आप अपने जीवन मे क्या बनना चाहते है,इसका निर्णय भी आप स्वयं ही करें । अपनी योग्यता व क्षमताओं पर विश्वास करें । तुम्हारा खुद पर विश्वास ही तुम्हारा आत्मविश्वास बनता
है । अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय करके चलना ही सफलता
पाने का एकमात्र  रास्ता है ।

         धन्यवाद ।

रविवार, 10 सितंबर 2017

आदत ।

                      आदत।


समय कभी  पीछे नहीं जाता और ना ही हमारे लिए पलभर ठहरता है। परन्तु समय के साथ चलकर उज्जवल भविष्य की
नींव रखना हमारे हाथ में हैै ।  हमारा भविष्य उज्जवल होगा या अंधकारमय यह हम खुद फैसला कर सकते है । इस कार्य 
की मूख्य कार्यकर्ता है हमारी आदते  ।
         आदते दो जुड़वा बहनो की तरह होती है, एक अच्छी और एक बुरी  । एक सुन्दर और दूसरी कुरूप । हमारी दिनचर्या की अच्छी आदतें हमें उज्जवल भविष्य की ओर ले जाती है और बुरी आदते अंधकारमय भविष्य की ओर । 
       बुरी आदते उस फिसलन भरी ढलान की तरह हैं, जिस पर एक बार पांव रखने के बाद आदमी कितना ही संभलने की
कोशिश करे,फिसलता ही जाता है ।  इसलिए हमें जीवन में सफलता पाने के लिए अपनी आदतों के प्रति सावधान रहना
चाहिए । मानव जीवन कीमती है, इसे व्यर्थ की आदतों मे ना गंवा दे। संपूर्णता से जिएं ।  आदते मानव जीवन का एक ऐसा सिद्धांत है, जिन पर हमारा चरित्र और जीवन की सफलताएँ 
निर्भर करती है । चीनी मान्यता के अनुसार यदि हम किसी कार्य को 21 दिन लगातार करते है तो वह कार्य हमारी आदत 
बन जाता है ।  

बस 21 दिन की हि तो बात है हम एक अच्छी आदत डाल सकते है, और एक बुरी आदत छोड़ सकते है ।


            धन्यवाद ।

शनिवार, 9 सितंबर 2017

                  जीवन का मूल्य 

                   
               
"बहुत बुरा समय आ गया है, किसी को किसी का न ख्याल है,न लिहाज यहाँ तक कि किसी की बात का भरोसा ही नहीं किया जा सकता है ......आदि।" इस तरह की बाते हम और आप अकसर करते है।
                             घटते जीवन -मूल्यो के प्रति हम सब चिंतित है तो जीवन मूल्य घटने की वजह कौन है? कौन है जिनके कारण जीवन से जीवन मूल्य निरंतर घटते जा रहे है।
                   
               

बदलते समय के अनुसार हम समझते है कि अब मूल्यों और सामाजिक मान्यताओं को बदलना आवश्यक है।आज धन की मान्यता इतनी अधिक बढ गई है कि मनुष्य उसे पाने के लिए अपने जीवन-आर्दशो को ताक पर रख देता है जीवन के कुछ मूल्य हमारे जीवन का आधार है ,उनके प्रति हमे श्रद्धा और आस्था बनाए रखनी चाहिए । धन -दौलत हमारे जीवन -यापन की शोभा है, जबकि मूल्य हमारे व्यक्तित्व का आईना है ।

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

             
   व्यक्तित्व 

 
    
किसी भी व्यक्ति का चारित्रिक विकास व व्यक्तित्व का निर्माण  उसके सुंदर वस्त्रों तथा  उसके वैभव से नहीं होता है। उसके चरित्र और व्यक्तित्व तो उसके कर्मो का फल हैं। यदि आपके कर्म अच्छे है तो आप अच्छे बनेगें ,और आपके साथ रहने वाला भी अच्छा बन जायेगा । यदि आपके कर्म बुरे है तो निः संदेह उनका प्रभाव भी बुरा ही होगा । हर व्यक्ति का जीवन उसके द्वारा निश्चित आर्दशो के अनुरूप ही बनता है। हम अपने जीवन को जिस किसी भी सोच में ढालेंगे , आपके चेहरे पर आपके विचारो की झलक स्पष्ट झलकेगी । क्योकि जब हमारे विचार बदलते है तो हमारे शारिरक हावभाव भी बदल जाते है।
अब यह हम पर ही निर्भर है कि अपने जीवन को किस दिशा में ले जाए।


इसलिए आप विचार कीजिए कि आपके कर्म कैसे होने चाहिए ,अच्छे या बरे, क्योंकि वह अंततः आपके साथ -साथ आपके सम्पर्क में आने वाले को भी प्रभावित करेगा।


गुरुवार, 7 सितंबर 2017

। बुद्धि ।।

                बुद्धि।

मानव आैर पशु के मध्य अन्तर स्थापित करते हुए प्राय यह कहा जाता हैकि मानव के पास बुद्धि है पशु के पास नहीं ।
अपने बुद्धिबल के द्वारा ही मानव शैर जैसे हिंसक और हाथी
जैसे विशालकाय पशु को अपने वश में कर लेता है ।

               मनुष्य और अमनुष्य के मध्य अंतर करने वाला
सूक्ष्म तत्व बुद्धि ही है ।बुद्धि के द्वारा ही मनुष्य अपना सर्वांगीण विकास कर पाता है । बुद्धि का लक्षण विवेकपूर्ण
आचरण है । हमारी बुद्धि ही हमारा गुरू होती है ।

    पूर्णतः बुद्धिहीन मनुष्य शायद कोई भी न होगा । जिसे हम मूर्ख या बुद्धिहीन कहते है,उसमे बुद्धि का बिल्कुल अभाव नहीं होता । एक अधयापक की दृष्टि मे किसान मूर्ख है, क्योंकि वह
साहित्य के विषय मे कुछ नही जानता,किन्तु परिक्षा करने पर
मालूम होगा कि किसान में खेती के सम्बंध मेपर्याप्त होशियार
सूझ और योग्यता है , जो कि एक अध्यापक के पास नहीं है ।

       हर इंसान में किसी भी विषय को समझने का एक बौद्धिक स्तर होता है । कम या अधिक इस संसार का नियम है ।

        धन्यवाद ।            
   

बुधवार, 6 सितंबर 2017

संक्लप



                                   संक्लप 
 मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसको स्वतंत्र इच्छा अथवा संकल्प शक्ति का वरदान प्राप्त है ।
संक्लप शक्ति मुनष्य के मनोबल को बढ़ाने में सहायक है ।
अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ना तो अपनी सीमाओ की परवाह करनी चाहिए,ना कठिन रास्तो से डरना चाहिए ।बस
एक दृढ़ संकल्प शक्ति पालिए ओई बढ़ते चलो अपनी मंजिल की और ।
     
 अगर अपने प्राथमिक प्रयासो मे असफल भी होते है तो भी 
हाथ पर हाथ धरकर बैठो नहीं,चलते रहो अपने लक्ष्य की ओर 
हमारी संकल्प शक्ति ही हमारी उपलिबधियों का आघार है। 
        हम लोक व्यवहार में प्रचलित इस लोकोक्ति को अपना प्रेरणा स्त्रोत बना सकते हैं। 
              "जहाँ चाह है, वहाँ राह है।"
       
    धन्यवाद।🙏🙏🙏🙏

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

। किताब ।।

            किताब ।

यह तो सभी स्वीकार करते है कि  हमे जो कुछ भी जानकारी 
प्राप्त होती है , हमारा जितना भी ज्ञान - वर्धन होता है, सब कुछ पुस्तको के माध्यम से ,आवश्यकता यह है कि हम अच्छी
और ज्ञान - वर्धक किताबे पढ़े । दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु यदि कोई है तो , वो है किताब ।

            किताबो को दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ सपत्ति माना गया है ।
श्रेष्ठ  पुस्तके समाज को सभ्य बनाने मे सहायक है । एक श्रेष्ठ किताब मन, चित्त, बुद्धि को निर्मल करती है । वहीं बुरी पुस्तके
जहर के समान है ।
                          किताबे मनुष्य का सच्चा मित्र होती है ।
आप निरतंर श्रेष्ठ विचारो वाली पुस्तके पढ़ते रहे, आपको जीवन मे कभी निराश एवं हतोत्साहित नहीं होना पड़ेगा ।
पुस्तको के सम्बंध में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की ये बाते

प्ररेणादायक है:-" मैं नरक मे भी अच्छी किताबाे का स्वागत करूँगा, क्योकि उनमे वह शक्ति है कि जहाँ वे होगीं ,वहीं
स्वर्ग बन जाएगा । पुस्तको का साथ कभी मित्रो की कमी नहीं खटकने देता ।

          धन्यवाद ।

सोमवार, 4 सितंबर 2017

। सुन अपने मन की धुन ।।

             सुन अपने मन की  धुन ।

एक बार एक बूढ़ा व्यक्ति और उसका पुत्र अपना गधा  लिए बाजार जा रहे थे ----- ।  यह कहानी आप सब ने सुन रखी होगी । करीब 2500  वर्ष पुरानी ईसप की इस नीतिकथा का सबक आज भी प्रासंगिक है कि लोगों को खुश करने के लिए 
परेशान होने की जरूरत नहीं हैं ।

                     अपनी जरूरतों और क्षमताओं के अनुसार काम करे , लोगों के कहे अनुसार नहीं । इसका मतलब यह भी नहीं कि कहीं आप किसी की भी ना सुनें आैर अपनी मनमानी शुरु कर दें । शुभचिंतको की सलाह व आलोचना को सूने , समझे ,मनन करे और उचित लगे तो स्वीकार करे ।

                    इसके 
लिए आप यह नीति अपना सकते हैं :-  सुने सबकी  करे मन की । सफलता के लिए आत्मविश्वास जरूरी है।  आत्म विश्वास के लिए मन की स्वीकृति।। यदि आप खुद का सम्मान नहीं करेगें तो दूसरों से भी सम्मान पाने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।  

        हीनभावना के कारण आपका व्यक्तित्व प्रभावहीन 
होगा  और सफलता के लिए किया गया प्रयास अधूरा होगा ।
दूसरो की पसंद नापसंद को स्वयं पर हावी ना होने दे ।लोग
आपको किस रूप मे देखना चाहते है यह जरूरी नहीं है जितना यह कि आप स्वयं को किस रूप में सफल मानते है ।

           इस  डर से  कि क्या कहेंगे लोग  खुद को दूसरो के हिसाब से बदलने की जरूरत नहीं है । खुद को जानना है तो सबसे पहले अपने बारे मे दूसरों के फैसले सुनना बंद करें । 
जहॉ एक बार  आप अपना आदर करने लगे ,अपने पक्ष में
बोलने लगे तो आपको अपनी संभावनाएँ और क्षमताएँ भी
दिखाई देने लगेंगी ।



  1.             धन्यवाद ।

रविवार, 3 सितंबर 2017

संस्कार ।

            संस्कार ।

 सशक्त  व सर्मथ समाज के लिए युवा शकि प्रमुख  आधार है। एक समर्थ और सशक्त युवा संगठन के लिए यह आवश्यक है 
कि उनका लालन-  पालन उचित हो । 

आज जरूरत है मानव को मानवीय संस्कारो की , संस्कार
सम्पन्न संतान ही  गृहस्थाश्रम की सफलता का सच्चा  गुण है ।
संस्कार सम्पन्न संतान समाज और परिवार के लिए वरदान साबित होते है।

घर संस्कारो की जन्मस्थली है। अतः संस्कारित करने का कार्य हमें अपने घर से ही करना चाहिए । हर माँ बाप चाहते है कि उनकी संतान उनकी अपेक्षा के अनुसार बने ,परन्तु कई बाहरी  परिस्थितियो की वजह से आजकल सांस्कृतिक और सामाजिक प्रदूषण बढ़ रहा हैै ।

किसी पेड़ के पत्तों एवं फूलो की सफाई कर देने भर से वह
हरा भरा नहीं हो जाता , बल्कि उसकी जड़ो को पोषित करना पड़ता है । तभी वह फलता फूलता है ।

ठीक इसी प्रकार व्यक्ति को समाज का अच्छा नागरिक बनाने के लिए  अगर बचपन से ही सही दिशा मिल जाए तो समाज को एक अच्छा नागरिक मिल सकता है ।


         

शनिवार, 2 सितंबर 2017

मन ।

       मन

मनुष्य जीवन का चित्रण अगर हम अपने मानस


पटल पर करे तो हम पाते है कि मानव शरीर जन्म से लेकर मृत्यु तक अलग- अलग आकृतियों -   विकृतियों मे ढ़लता  जाता र्ह ।  ,परन्तु मन तो वैसा ही रहता है । मन की इच्छा ,लालसा, उन्मुक्ता अन्त तक वैसी ही बनी रहती  है। 

बच्चो का मन सदा प्रसन्न रहता है । यदि हम उनके बचपन को स्वतंत्र  उड़ान दे  तो हम  पायेंगे कि प्रत्येक बच्चे के भीतर कोई ना कोई कलाकार छुपा बैठा है ।जरूरत है उस कलाकार को बाहर लाने की । बच्चो का मन कलाकार होता है ,इसीलिए वे सदा प्रसन्न रहते है। नाटककार ,चित्रकार, संगीतकार ,गायक और ना जाने कितने तरह के कलाकार आपको बचपन मे मिल जाएगें ।
जैसे- जैसे मनुष्य की उम्र बढ़ती जाती है, ये सारे कलाकार ना जाने कहाँ छुप जाते हैं  । और जीवन की ऊह पोह में कब बुढ़ा हो जाता है पता ही नहीं चलता । लेकिन जब भी वह अपने मन मे झाँकता है फिर वही आशाएँ, सपने जीवित दिखाई देते हैं । 

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

गुरु ।

             गुरु ।

किसी विषय में हमें जिससे जरूरी ज्ञान मिले, हमारा अज्ञान दूर हो, उस विषय  में वह हमारा गुरू हो जाता है । जैसे हम किसी से मार्ग पूछतेहैं और वह हमें मार्ग बता देता है तो मार्ग बताने वाला हमारा गुरु हो जाता हैै ।हम चाहें माने या ना मानें।


गुरु एक छोटा बच्चा भी हो सकता है। कई मामलों में हमें बच्चोसे भी बहुत कुछ सिखने को मिलता है । इस जमाने मे सच्चे संत म्हात्मा देखने को नहीं मिलते । सच्चे महात्मा पहले जमाने मे भी बहुत कम थे, वर्तमान में तो विशेषकर कम होगए है वर्तमान मे तो गुरु बनना एक व्यवसाय हो गया है । 

आज के गुरु शिष्य  इसलिए बनाते हैं कि उनकी आजीविका चलती रहे । अपनी मनमानी होती रहे । आजकल नकली चीजो का जमाना है ।ब्रह्मण भी नकली गृहस्थी भी नकली ,साधु भी नकली ,ब्रह्मचारी भी नकली । यहाँ तक की खाने पीने  की सभी वस्तुएँ भी नकली ।   

जो सच्चे संत महात्मा होते है , उनको गुरु बनने का शौक नहीं होता, उन्हें तो दूनिया के उद्वार का शौक होता है । उनमे  जन कल्याण की सच्ची भावना होती है । भगवान की जगह अपनी पूजा करवाना  पाखाण्डिपौ का काम है । 


जिसकेभीतर शिष्य बनाने की इच्छा है, धन कमाने की इच्छा है, मान बड़ाई की इच्छा है , उसके द्वारा दूसरो का कल्याण तो दूर उसका अपना कल्याण भी नहीं हो सकता ।
सच्चे गुरू की महिमा बहुत है।  गुरु की महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता ।

किताबें

गुरू